📰 बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Election) 2025: NDA की प्रचंड जीत के 5 बड़े कारण और महागठबंधन की हार का विस्तृत विश्लेषण
Bihar Election Result 2025 Analysis: NDA की प्रचंड जीत
Bihar Election Result 2025 Analysis: NDA की प्रचंड जीत, नीतीश-मोदी की जोड़ी का कमाल! महागठबंधन की हार के 5 मुख्य कारण
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव(Bihar Election) 2025 के परिणाम ने एक बार फिर राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया है। दो चरणों में हुए रिकॉर्ड तोड़ मतदान के बाद, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने 243 सीटों वाली विधानसभा में 202 सीटों पर जीत हासिल कर प्रचंड बहुमत दर्ज किया है।1 वहीं, तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन मात्र 35 सीटों पर सिमट गया, जो उसके लिए एक करारी हार है।
इस ऐतिहासिक जनादेश ने बिहार की राजनीति में ‘सुशासन और विकास’ के नारे को एक बार फिर स्थापित कर दिया है, जबकि जातिगत समीकरणों और सत्ता विरोधी लहर के अनुमानों को ध्वस्त कर दिया।
📊 बिहार चुनाव(Bihar Election) 2025: सीट और वोट शेयर का लेखा-जोखा
NDA ने कुल 46.52% वोट शेयर के साथ शानदार प्रदर्शन किया, जबकि महागठबंधन 37.64% वोट ही हासिल कर सका।
| गठबंधन/पार्टी | जीती गई सीटें (243 में से) | वोट प्रतिशत | मुख्य नेता |
| राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) | 202 | 46.52% | नीतीश कुमार, नरेंद्र मोदी |
| भारतीय जनता पार्टी (BJP) | 89 | 20.08% | |
| जनता दल (यूनाइटेड) (JDU) | 85 | 19.26% | |
| लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) (LJP-RV) | 19 | 4.97% | |
| हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) (HAMS) | 5 | 1.18% | |
| राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) | 4 | 1.03% | |
| महागठबंधन | 35 | 37.64% | तेजस्वी यादव |
| राष्ट्रीय जनता दल (RJD) | 25 | 23% | |
| भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) | 6 | 8.71% | |
| वाम दल (CPI-M, CPI-ML-L) | 3 | 4.18% | |
| अन्य | 6 | ~15.84% | ओवैसी, मायावती |
(स्रोत: चुनाव आयोग/एजेंसी अनुमान)
🎯 NDA की प्रचंड जीत के 5 मुख्य कारण
NDA की इस ऐतिहासिक जीत के पीछे कई महत्वपूर्ण कारक जिम्मेदार हैं, जिन्होंने सत्ता विरोधी लहर के प्रभाव को बेअसर कर दिया।
1. महिला मतदाताओं का ऐतिहासिक समर्थन
इस चुनाव में 67.13% के रिकॉर्ड-तोड़ मतदान में महिलाओं की भागीदारी 71.78% रही।4 NDA की जीत में महिला वोट बैंक निर्णायक साबित हुआ।
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‘लाभार्थी वर्ग’ की गोलबंदी: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महिला केंद्रित कल्याणकारी योजनाओं (जैसे – शराबबंदी, साइकिल योजना, नकद लाभ योजना) ने महिलाओं को एक मजबूत ‘क्षैतिज वोटिंग ब्लॉक’ के रूप में संगठित किया।
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महिलाओं ने सुशासन, सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर NDA पर अपना भरोसा जताया।
2. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय लोकप्रियता
स्थानीय एंटी-इनकम्बेंसी के बावजूद, मतदाताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय नेतृत्व और उनकी ‘गारंटी’ पर भरोसा जताया।
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डबल इंजन सरकार का नारा: केंद्र और राज्य में एक ही गठबंधन की सरकार होने से विकास कार्यों में तेजी आने का विश्वास जनता में मजबूत हुआ।
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राष्ट्रीय मुद्दों (जैसे राम मंदिर, हिंदुत्व) और कल्याणकारी योजनाओं (मुफ्त राशन, पीएम आवास योजना) के लाभार्थियों ने NDA के पक्ष में एकतरफा मतदान किया।
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3. सामाजिक समीकरणों का सफल प्रबंधन (EBC/OBC/दलित)
NDA ने अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) और आर्थिक पिछड़ा वर्ग (EBC) के साथ-साथ दलित वोट बैंक पर अपनी पकड़ बनाए रखी।
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नीतीश कुमार की छवि EBC के नेता के रूप में बरकरार रही, जो NDA के लिए सबसे बड़ा आधार है।
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सामाजिक इंजीनियरिंग के तहत गठबंधन में विभिन्न छोटे जातीय दलों (LJP-RV, HAMS, RLM) को शामिल करने से यादव-मुस्लिम (M-Y) समीकरण की धार कुंद हुई।
4. महागठबंधन का बिखरा हुआ अभियान और नेतृत्व
महागठबंधन का चुनाव अभियान असंगठित रहा।
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तेजस्वी यादव सिर्फ ‘यादव-मुस्लिम’ के संकीर्ण मंच से बाहर नहीं निकल पाए, जिससे गैर-यादव ओबीसी और उच्च जातियों ने उनसे दूरी बनाए रखी।
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महागठबंधन के कुछ सहयोगियों, विशेषकर कांग्रेस, का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। कांग्रेस मात्र 6 सीटों पर सिमट गई।
5. अन्य छोटे दलों का ‘वोट कटवा’ प्रभाव
AIMIM और BSP जैसी छोटी पार्टियों ने कुछ सीटों पर वोटकटवा (Spoiler) की भूमिका निभाई, जिससे महागठबंधन के उम्मीदवारों को नुकसान हुआ।
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बसपा ने 1 सीट (रामगढ़) जीती, लेकिन कई सीटों पर महागठबंधन के वोट बैंक (दलित-मुस्लिम) को विभाजित किया।
💔 महागठबंधन की हार का कड़वा सच
महागठबंधन की हार के मुख्य कारण स्पष्ट हैं:
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‘लालू युग’ की अलोकप्रिय यादें: सत्ता में वापसी की उम्मीद पाले महागठबंधन को 20 साल पहले के ‘जंगलराज’ की अलोकप्रिय यादों का खामियाजा भुगतना पड़ा।
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विश्वसनीयता का संकट: तेजस्वी यादव के पास नीतीश कुमार के सुशासन की काट के लिए कोई ठोस और विश्वसनीय विकल्प नहीं था।
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जातिगत सीमितता: यादव और मुस्लिम वोट बैंक पर अत्यधिक निर्भरता, जिससे अन्य वर्गों का समर्थन नहीं मिल पाया।
🌟 नतीजों के मुख्य बिंदु
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BJP बनी सबसे बड़ी पार्टी: पहली बार 89 सीटें जीतकर भाजपा बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, जो बिहार की राजनीति में एक बड़ा बदलाव है।
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नीतीश कुमार की केंद्रीयता: जनादेश ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि नीतीश कुमार आज भी बिहार की राजनीति के केंद्र बिंदु हैं, उन्होंने सत्ता विरोधी लहर को सफलतापूर्वक मात दी।
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रिकॉर्ड तोड़ मतदान: 67.13% मतदान ने बिहार के मतदाताओं की बढ़ी हुई जागरूकता को दर्शाया है।
यह जनादेश सुशासन, महिला सशक्तिकरण और राष्ट्रीय नेतृत्व के प्रति बिहार की जनता के भरोसे को दर्शाता है। NDA की सफलता भविष्य में भारतीय राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण रोडमैप प्रस्तुत करती है।
आप इन नतीजों को किस नज़र से देखते हैं? क्या यह जीत पूरी तरह से मोदी-नीतीश की जोड़ी का कमाल है, या महागठबंधन की कमज़ोरियों का परिणाम?
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